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Jaunpur News : एनसीईआरटी की जगह लग रही प्राइवेट पब्लिशर्स किताबें, अभिभावकों की कट रही जेब

👉निजी प्रकाशकों से मिल रहा है कमीशन, अभिभावक की टूट रही कमर

जौपनुर। अप्रैल से नया शिक्षा सत्र शुरू हो गया है। इससे पहले दाखिलों में स्कूल संचालकों की ओर से मनमानी फीस वसूली और ड्रेस व निजी प्रकाशकों की किताबों में कमीशन का खेल शुरू हो गया है। नियमों को पूरा तरह धत्ता बताते हुए कई स्कूल संचालक तो खुद ही किताबें व वर्दी बेच रहे हैं। वहीं, कुछ ने बाहर दुकानें निर्धारित कर दी हैं। उस स्कूल की किताबें बस वहीं पर मिलेंगी, जिसमें उनका मोटा कमीशन होगा। 

शहर के ओलन्दगंज, कोतवाली चौराहा, कालीकुत्ती, पालिटेक्निक चौराहा समेत अन्य शहर के कई क्षेत्रों में किताबों की दुकानों पर स्कूल के नाम के साथ किताबों की उपलब्धता के बैनर टांग रखे हैं। इससे दो बातें साफ हो रही है कि एक तो किताबों की दुकानें निर्धारित हैं, दूसरा निजी प्रकाशकों की किताबें लगवाई जा रही हैं। शिक्षा विभाग बार-बार सिर्फ कार्रवाई की बात कहता है, लेकिन निजी स्कूलों में कभी जांच के लिए अधिकारियों ने कदम नहीं रखते। इस वजह से निजी स्कूल अभिभावकों को बच्चों के कॅरियर का डरावा दिखाकर मनमर्जी कर रहे हैं। शिक्षा माफियाओं, संबंधित विभागीय कर्मचारी और स्कूल प्रबंधकों के गठजोड़ से अभिभावकों की कमर टूट रही है।


अभिभावक हैं पूरी तरह मजबूर

जिले में तकरीबन 400 से अधिक प्राइवेट स्कूल संचालित हो रहे हैं, जिनमें लगभग एक़ लाख छात्र-छात्राएं पढ़ रहे हैं। इन स्कूलों में हर साल नए शैक्षिक सत्र की शुरुआत में किताबों में कमीशन का खेल होता है। प्राइवेट स्कूलों में नेशनल काउंसिल फॉर एजुकेशनल रिसर्च एंड ट्रेनिंग (एनसीईआरटी) के बजाय प्राइवेट पब्लिशर्स की किताबें पढ़ाने के लिए अभिभावकों को लिस्ट थमाई जा रही है। एक तरफ जहां सरकारी स्कूलों में एनसीईआरटी की किताबों से पढ़ाई कराई जाती है वहीं प्राइवेट स्कूल निजी प्रकाशक की किताबों को प्राथमिकता दे रहे हैं। 


तीन गुने दाम होते हैं 

एनसीईआरटी की बुक्स का जो सेट 250 से 300 रुपए में आता है, प्राइवेट पब्लिशर्स की किताबों का उसी क्लास का सेट पेरेंट्स को 800 से लेकर 5 हजार रुपए में थमाया जा रहा है। आठवीं कक्षा की किताबों व कापियों का सेट 5760, तीसरी कक्षा की किताबों का सेट दो हजार रुपए में दिया जा रहा है। स्कूल की डायरी भी चार गुना कीमतों में दे रहे हैं। वहीं, पूरे सेट के साथ अनाप-शनाप चीजें दी जा रही हैं। वहीं, किताबों की लागत से चार-पांच गुना ज्यादा कीमत छापकर अभिभावकों को ठगा जा रहा है। कमीशन की रकम किताबों के दुकानदार और स्कूल प्रशासन में बंटती है। 


क्या शिक्षा विभाग की है मौन स्वीकृति ?

जिल के प्राइवेट स्कूल संचालकों को शिक्षा विभाग की मौन स्वीकृति प्राप्त है, इसलिए मनमाने ढंग से अभिभावकों को लूटा जा रहा है। अपने बच्चों का भविष्य बनाने के चक्कर में अभिभावकों का वर्तमान कष्टदायी हो गया है। जिला प्रशासन आखिर एनसीईआरटी की पुस्तकों को सभी स्कूलों में पढ़वाने के लिए क्यों नहीं स्कूल संचालकों को हिदायत देते हैं, ये अपने आपमें खुद एक सवाल है। इस संबंध में बेसिक शिक्षा अधिकारी डॉक्टर गोरखनाथ पटेल ने बताया कि मीडिया अगर सूची उपलब्ध करा दे तो कारवाई की जाए। अब ऐसे में सवाल उठता है कि जांच करना संबंधित विभाग का काम है न कि मीडिया का, आगे उन्होंने कहा कि ठीक है जांच करवा रहे है। 

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जेड हुसैन (बाबू)

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