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JAUNPUR NEWS : डीएनए फिंगरप्रिंटिंग के जनक डॉ. लालजी सिंह का 78वां जन्मदिवस मनाया गया

👉डॉ. लालजी सिंह रिसर्च सेंटर में वैज्ञानिकों और ग्रामीणों ने दी श्रद्धांजलि

सिकरारा, जौनपुर। उत्तर प्रदेश के सिकरारा क्षेत्र  जौनपुर जिले के कलवारी गाँव में भारत में डीएनए फिंगरप्रिंटिंग के जनक और काशी हिंदू विश्वविद्यालय (बीएचयू) के पूर्व कुलपति डॉ. लालजी सिंह का 78वां जन्मदिवस डॉ. लालजी सिंह रिसर्च सेंटर में श्रद्धा और उत्साह के साथ मनाया गया। इस अवसर पर डॉ. आशीष सिंह के नेतृत्व में वैज्ञानिकों, शोध छात्रों और स्थानीय ग्रामीणों ने डॉ. सिंह के वैज्ञानिक योगदान और उनकी सामाजिक विरासत को याद किया। कार्यक्रम में उनके द्वारा स्थापित जीनोम फाउंडेशन के कार्यों और ग्रामीण भारत में स्वास्थ्य सेवाओं को सशक्त करने के उनके दृष्टिकोण पर चर्चा हुई| मुख्य आयोजक डॉ. आशीष सिंह ने कहा, "डॉ. लालजी सिंह न केवल एक महान वैज्ञानिक थे, बल्कि अपनी माटी के प्रति गहरी निष्ठा रखने वाले सच्चे सपूत थे। उनके डीएनए फिंगरप्रिंटिंग के कार्य ने भारत को वैश्विक मंच पर गौरवान्वित किया।" उन्होंने बताया कि डॉ. लालजी सिंह रिसर्च सेंटर ग्रामीण क्षेत्रों में उन्नत जैव प्रौद्योगिकी को बढ़ावा देने के लिए प्रतिबद्ध है, जो डॉ. सिंह के जीनोम फाउंडेशन के सपने को साकार करता है। डॉ. आशीष ने युवाओं से उनके पदचिह्नों पर चलकर विज्ञान और समाजसेवा को जोड़ने का आह्वान किया।  डॉ. लालजी सिंह ने डीएनए फिंगरप्रिंटिंग को भारत में न केवल फॉरेंसिक जांच का हिस्सा बनाया, बल्कि इसे पर्सनलाइज्ड मेडिसिन और वन्यजीव संरक्षण जैसे क्षेत्रों में भी उपयोगी बनाया। कार्यक्रम में वक्ताओं ने बताया कि 25 वर्ष पहले उनके द्वारा प्रतिपादित पर्सनलाइज्ड मेडिसिन का सिद्धांत आज विश्व स्तर पर मान्य है। डॉ. सिंह ने 1995 में हैदराबाद में सेंटर फॉर डीएनए फिंगरप्रिंटिंग एंड डायग्नोस्टिक्स (सीडीएफडी) की स्थापना की, जिसने कई हाई-प्रोफाइल मामलों जैसे राजीव गांधी हत्याकांड और नैन साहनी हत्याकांड को सुलझाने में मदद की।5 जुलाई 1947 को कलवारी गाँव में जन्मे डॉ. लालजी सिंह ने बीएचयू से बीएससी, एमएससी और 1971 में पीएचडी पूरी की। एडिनबर्ग विश्वविद्यालय में 13 वर्षों तक शोध के बाद 1987 में वे हैदराबाद के सेंटर फॉर सेलुलर एंड मॉलिक्यूलर बायोलॉजी (सीसीएमबी) से जुड़े, जहाँ 1998 से 2009 तक निदेशक रहे। 2011 से 2014 तक बीएचयू के 25वें कुलपति के रूप में उन्होंने मात्र एक रुपये वेतन लिया और विश्वविद्यालय को आधुनिक शोध सुविधाओं से समृद्ध किया। उनकी मृत्यु 10 दिसंबर 2017 को हृदयाघात से हुई, लेकिन उनकी वैज्ञानिक विरासत आज भी प्रेरणा देती है। |

कार्यक्रम में डॉ. लालजी सिंह रिसर्च सेंटर में एक संगोष्ठी का आयोजन किया गया, जिसमें उनके शोध कार्यों, विशेष रूप से बंधेड क्रैट (सांप) के डीएनए अध्ययन और भारतीय आबादी के जीनोमिक्स पर उनके योगदान पर प्रकाश डाला गया। स्थानीय ग्रामीणों ने भी डॉ. सिंह को अपनी माटी का गौरव बताते हुए उनके प्रति कृतज्ञता व्यक्त की। डॉ. आशीष सिंह ने बताया कि रिसर्च सेंटर ग्रामीण भारत में जेनेटिक डायग्नोस्टिक्स को सुलभ बनाने के लिए कार्यरत है।

 संगोष्ठी में उपस्थित वैज्ञानिकों ने डॉ. सिंह के जीनोम फाउंडेशन के दृष्टिकोण को रेखांकित किया, जिसका उद्देश्य ग्रामीण भारत में उन्नत स्वास्थ्य सेवाएँ पहुँचाना था। डॉ सिंह ने कहा, "डॉ. सिंह की सादगी और समर्पण हमें सिखाता है कि विज्ञान का असली उद्देश्य समाज की सेवा है।" कार्यक्रम में स्थानीय स्कूलों के छात्रों ने भी भाग लिया, जिन्हें डॉ. सिंह के जीवन और कार्यों के बारे में बताया गया, ताकि वे विज्ञान के प्रति प्रेरित हों। डॉ. लालजी सिंह ने न केवल विज्ञान में योगदान दिया, बल्कि सामाजिक न्याय के लिए भी कार्य किया। उनके डीएनए फिंगरप्रिंटिंग ने कई आपराधिक और नागरिक मामलों में सच्चाई सामने लाने में मदद की। 2004 में उन्हें पद्मश्री से सम्मानित किया गया। कार्यक्रम में वक्ताओं ने मांग की कि उनकी स्मृति में मरणोपरांत पद्मविभूषण प्रदान किया जाए, ताकि उनकी विरासत को और सम्मान मिले। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने 2020 में जौनपुर में एक सड़क और अस्पताल को उनके नाम पर समर्पित करने की घोषणा की थी। 

डॉ. आशीष सिंह ने घोषणा की कि डॉ. लालजी सिंह रिसर्च सेंटर में जल्द ही एक नया जेनेटिक्स प्रशिक्षण कार्यक्रम शुरू किया जाएगा, जो स्थानीय युवाओं को जैव प्रौद्योगिकी में प्रशिक्षित करेगा। कार्यक्रम में उपस्थित ग्रामीणों और शोधकर्ताओं ने डॉ. सिंह के सपनों को साकार करने का संकल्प लिया।

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