जौनपुर। साहित्य वाचस्पति डॉक्टर श्रीपाल सिंह क्षेम के 103वें जन्मदिवस समारोह के अवसर पर क्षेम उपवन स्थित उनकी प्रतिमा पर माल्यार्पण किया गया।
इस मौके पर शशि मोहन सिंह क्षेम, प्रदीप कुमार सिंह ओम प्रकाश सिंह डॉक्टर मधुकर तिवारी, कांग्रेसी नेता जयप्रकाश सिंह साथी, रामदयाल द्विवेदी, जेड हुसैन "बाबू", विनोद विश्वकर्मा, राजेश मौर्य, शशि शेखर सिंह समेत अन्य लोग मौजूद रहे। विदित हो कि श्री क्षेम के जन्मदिवस समारोह के अवसर पर एक भव्य कवि सम्मेलन का आयोजन आज किया जाएगा जिसमें देश के नामी गिरामी कवियों का जमावड़ा होगा। कार्यक्रम सिद्धार्थ उपवन में होगा।
सिद्धांतों के प्रति अडिग रहे साहित्य वाचस्पति डॉक्टर क्षेम : प्रदीप कुमार सिंह
साहित्य का हमारे जीवन में महत्वपूर्ण स्थान है। साहित्य हमें अज्ञान रूपी अंधकार में प्रकाश देने का काम करता है। अंधकार है वहां जहां आदित्य नहीं। मुर्दा है वह देश जहां साहित्य नहीं।।
देश जब अंग्रेजों के शासन से मुक्त होने के लिए संघर्ष कर रहा था उसे समय भी साहित्यकारों ने अपनी लेखनी से देशभक्ति की लौ को प्रज्वलित करने का काम किया। सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है देखना है जोर कितना बाजू ए कातिल में है।। गाते गाते हमारे नौजवान फांसी के फंदे पर झूल गए। इससे सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है कि साहित्य में कितनी ऊर्जा है। जनपद जौनपुर की मिट्टी की जब चर्चा होती है तो बनारसी दास जैन, पंडित रामनरेश त्रिपाठी पंडित रूप नारायण त्रिपाठी और साहित्य वाचसपति डॉक्टर श्रीपाल सिंह का नाम हमारे मस्तिष्क में उभर आता है। डॉक्टर क्षेम ने छायावादोत्तर युग के साहित्यकारों में अपनी विशिष्ट पहचान बनाई उनकी कृतियों में श्रृंगार रस की प्रधानता अवश्य रही परंतु उन्होंने राजनीति समाज में व्याप्त बुराइयों किसानों मजदूरों की व्यथा पर भी अपनी लेखनी चलाई। डॉक्टर क्षेम को अपनी पत्नी का वियोग भी सहन करना पड़ा उनके मन की वेदना उनकी प्रमुख कृति राख और पाटन में व्यक्त होती है। इस पुस्तक को प्रदेश सरकार द्वारा पुरस्कृत भी किया गया। इसके अलावा नीलम तरी, ज्योति तरी, संघर्ष तरी और कृष्ण द्वैपायन महाकाव्य में उनकी साहित्यिक प्रतिभा देखने को मिलती है। एक अध्यापक होने के कारण उन्होंने साहित्य की मर्यादा को बचाए रखा। उनके समय के दर्जनों कवि शायर अर्थ के लिए फिल्मों में गीत लिखने लगे। वे रूपए पैसे के लिए साहित्य के स्तर को गिराने में रंच मात्र भी संकोच नहीं किया। एक और विशेष गुण डॉक्टर क्षेम में था जिसका उल्लेख किया जाना समीचीन है। पहले हिंदी के कवि सम्मेलनों में केवल हिंदी भाषा के कई ही आते थे। उर्दू के शेयर भी मुशायरों में ही भाग लिया करते थे। डॉक्टर क्षेम ने जौनपुर की गंगा जमुनी तहजीब को समझने का काम किया। उन्होंने कवि सम्मेलनों को कवि सम्मेलन एवं मुशायरा का स्वरूप प्रदान किया। इसमें हिंदी के कवियों के साथ-साथ उर्दू के शायर भी एक ही मंच से अपनी अपनी रचनाएं सुनाते थे उनके शिष्यों में कई और शेयर दोनों सम्मिलित रहते। डॉक्टर क्षेम को उर्दू भाषा में भी महारत हासिल थी। बशीर बद्र जैसे शायर भी डॉक्टर क्षेम को अपनी रचनाएं सुनाते और उनसे आवश्यक विचार विमर्श किया करते थे। आज साहित्य वाचस्पति डॉक्टर श्रीपाल सिंह क्षेम का 103 वां जन्मदिवस है। प्रति वर्ष क्षेमस्वनी संस्था द्वारा इसे साहित्यिक पर्व के रूप में मनाया जाता है। लोग विभिन्न संस्मरणों के माध्यम से इस महान साहित्यकार को श्रद्धा पूर्वक स्मरण करते हैं। उनके व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर चर्चाएं होती हैं। एक भव्य कवि सम्मेलन का आयोजन भी होता है जिसमे राष्ट्र के ख्यातिलब्ध कवियों द्वारा अपनी वाणी से जौनपुर के लोगों को रस विभोर किया जाता है। क्षेमस्वनी संस्था का अध्यक्ष होने के कारण डॉक्टर क्षेम के जन्मदिवस पर सभी लोगों को बधाई देता हूं और इस साहित्यिक समारोह के सफल बनाने हेतु आप सभी से सादर अनुरोध भी करता हूं।